Monday, September 27, 2010

कहानी इश्क और हाय की.. भाग एक


पलकें झुकाए
खुद को सौ पर्दों में छुपाये
हया एक रोज़ जो गुज़री
हुस्न की गली के चौक से
देखा, चौराहे पर
सर घुटनों में दबाए
इश्क़ फटेहाल बैठा है
था उसको बहुत गुरूर लेकिन
जिस कदर हुस्न ने तोड़ा उसको
लिए टूटी चाहत का मलाल बैठा है
मायूस अब भी सोचे है
शायद.., तरस आ जाए
इस हालत पे हुस्न को..
इश्क़ की मासूमियत पर
हया पिघल गयी
हाथ थाम इश्क़ का
साथ उसको ले चली
इश्क़ की मासूमियत का
हया पर ऐसा जादू चला
हया फिर उसी और साथ बह चली
जहाँ जहाँ इश्क़ चला
सोच में डूबी हया
यह सोच कर घबराए
इश्क़ का जादू यही
कहीं उसे खुद से ना ले जाए
इश्क़ से इश्क़ होने लगा है
हया को सोच के हया आए...!!

2 comments:

  1. पहले भाग दो पर जा पहुंचे थे..
    फिर दो लिखा देखा तो बिना पढ़े जल्दी से नीचे उतरे,,,

    :)

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  2. are waah..pahle bhaag 2 padh liya tha maine..ab dobara padha to samajh aya..laajawab

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